शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सांपों को दूध पीलाने से सर्प देवता प्रसन्न होते हैं। इससे घर में अन्न धन और लक्ष्मी का भंडार बना रहता है। इसलिए यह परंपरा सदियों से चली आ रही है कि नागपंचमी के दिन नागों को दूध लावा अर्पित किया जाए।

इस परंपरा का लाभ उठाने के लिए नागपंचमी के मौके पर संपेरों की टोलियां लोगों के दरवाजे पर जाकर नाग के दर्शन करवाती है। दर्शन के बाद नाग देवता के लिए दूध लावा का दान मांगा जाता है।

ऐसा ही दृश्य इस वर्ष भी देश के कई भागों में देखा गया है। लेकिन नागों के दूध पीने से जुड़ा एक रहस्य ऐसा है जो आपको चौंका देगा।

दूध पीने के बाद सांप को क्या हो जाता है?: शास्त्रों में नाग को दूध पीलाने के मत को विज्ञान स्वीकार नहीं करता है। जंतुओं के स्वभाव एवं उनके गुणों पर काम करने वाले विशेषज्ञ, डॉक्टर्स और खुद सपेरे भी स्वीकार करते हैं कि सांप का शरीर इस प्रकार का नहीं होता है कि वह दूध पी सके। अगर सांप ने दूध पी लिया तो उनकी आंतों में इंफेक्शन हो जाता है और वह जल्द ही वह मर जाते हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की जीव विज्ञान की प्रोफेसर अनिता गोपेश के मुताबिक सांप पूरी तरह से मांसाहारी होता और चूहे, कीड़े–मकोड़े, मछलियां आदि खाता है। दूध उसके लिए जहर समान है। सांप की सुनने की क्षमता नहीं होती, वह सिर्फ बीन से निकली तरंगों को महसूस करके बीन के साथ डोलता है।

आयुर्वेदाचार्य डॉ.एसके राय ने बताया कि सांप ऐसी चीजें ग्रहण करते हैं, जो न अम्लीय और न ही क्षारीय हों। दूध की प्रकृति बीच की है, ऐसे में यदि उसने दूध पी भी लिया तो उसके आंतों में इंफेक्शन हो जाएगा। दूध की मात्रा थोड़ी भी बढ़ी तो सांप की मौत हो जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर सांपों का शो करने वाले भवर बावरा ने भी इस परंपरा को पूरी तरह भ्रांति बताया।

इसलिए शुरू हुई सांप को दूध पिलाने की परंपरा: पर्यावरणविद इस पंरपरा को पारिस्थितिक संतुलन से जोड़कर देखते हैं। उनका कहना है कि सांप ऐसा प्राणी है जिसे पानी के भीतर सांस लेने में मुश्किल आती है। बारिश में जैसे ही बिल में पानी घुसता है, वे बिलों से बाहर निकल आते हैं।

बड़ी संख्या में सांप निकलने पर लोग उन्हें मार देंगे, इसीलिए ऋषियों ने उन्हें दूध–लावा चढ़ाने की परंपरा शुरू की ताकि सांपों का जीवन और पारिस्थितिक संतुलन बना रहे।

सांप के केचुल का यह फायदा जानकर हैरान रह जाएंगे: सांपों के जादूगर माने जाने वाले चौफटका निवासी लल्लू सपेरे की माने तो इलाहाबाद में कोबरा, करइत, अजगर, घोड़ा पछाड़–धामिन, गेहुंअन, दोमुंहा, मगरगो, शिवनाथर सहित सांपों की 116 जातियां मिलती हैं, लेकिन इनमें से केवल पांच फीसदी विषैली होती हैं।\

उसने माना कि कोबरा और करइत की संख्या तेजी से कम हो रही है। लल्लू ने बताया कि केंचुल से नासूर के इलाज की दवा बनती है सो इसकी मांग ज्यादा है।

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